वैश्या वृतांत - 18

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शरद ऋतु आ गयी प्रिये ! यशवन्त कोठारी हां प्रिये, शरद ऋतु आ गयी है। मेरा तुमसे प्रणय निवेदन है कि तुम भी अब मायके से लौट आओ ! कहीं ऐसा न हो कि यह शरद भी पिछली शरद की तरह कुंवारी गुजर जाए। बार बार ऋतु का कुंवारी रह जाना, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है- ऐसा सयानों का कहना है। जब कभी ऋतुवर्णन के लिए साहित्य खोलता हूं तो मुझे बड़ा आनन्द आता है। इस प्रिय ऋतु के बारे में कवियों ने काफी लिखा है, और बर्फ की तरह जमकर लिखा है। जमकर लिखने वालों में