कोयला खदान की गहराई से ऊपर धरती की सतह तक आने में हरनाम सिंह बुरी तरह थक चुके थे। खाखी रंग के हाफ पैंट और शर्ट पर कई जगह कोयले की कलिख लगी थी, जो खदान की गहराई से उनके साथ ही चुपके से निकल आयी थी। हाजरी बाबू के ऑफिस की बगल में बने ओवरमैन के अपने कार्यालय कक्ष में पहुँचकर उन्होंने कमर से अपनी बेल्ट खोली। उस बेल्ट के साथ ही पीठ की ओर कमर पर बंधी, दो-ढाई किलो वज़न वाली, कैप-लैम्प की बैटरी भी उतार कर उन्होंने टेबल पर रख दी। हाथ में थमा डयूटी वाला मज़बूत डंडा वे पहले ही कोने में रख चुके थे। कोयला खदान की काली अँधेरी गहराइयों में बस यही दो चीज़ें सब के साथ होती हैं, उनकी रक्षक भी और उनकी मार्गदर्शक भी।