आधी रात का वक़्त था। सारा मुहल्ला नींद में खोया हुआ था। चारों तरफ सन्नाटा था। अचानक कर्तार जी के दरवाजे़ पर किसी ने दस्तक दी। कर्तार जी चौंक उठे। उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने घोष बाबू खड़े थे। उन्हें बड़ी हैरत हुई। ‘‘ओए की हो गिआ तुहानू? एनी रात नूँ?’’ कर्तार जी कभी-कभी जब हैरत में होते, या गुस्सा करते, तो ठेठ पंजाबी बोलने लगते थे। ‘‘पुंतुलु की तबीयत बहुत ख़राब है। उल्टियाँ बंद नहीं हो रहीं। जल्दी चलिए, अस्पताल ले चलते हैं। भगवान न करे कहीं कुछ ऐसा-वैसा---’’