चाँदनी चौक के बल्लीमरान में क़ासिम जान गली जहाँ ग़ालिब की बची-कुची हवेली को देखने लोग दूर-दूर से आते है। वह भी रोज़ इसी ग़ालिब की गली से होकर और दो तंग गलियों से होता हुआ जाता है और उसकी नज़र गली के चौथे मकान की दूसरी मंज़िल की खुली खिड़की पर पड़ी तो वही खड़ा मिलता सादिक़ का प्यार ज़ैनब । साँवली-सलोनी सी ज़ैनब लम्बे बालों को सुलझाते हुए जब इधर-उधर देखते हुए सादिक की तरफ देखती है तो उसे लगता है कि कोई इन आँखों को ग़ौर से देख ले तो उसे ज़िहाद कर मासूम लोगों को मारने की ज़रूरत नहीं है। उसे