“यही दिन थे..... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ.... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इस वक़्त मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में रच रही है..... और मैं ने इसी तरह लेटे लेटे अपनी फड़फड़ाती हुई रूह उस के हवाले कर दी थी।”