सैलाब - 7

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ग्यारह बज कर तीस मिनट हो चुके थे। सूरज मुंडेर पर आ खड़ा था। उस की प्रखर किरणें सिर पर वार करने लगी थीं। दोपहर होने को थी लेकिन शतायु वापस घर नहीं लौटा था। शतायु के अभी तक घर न पहुँचने से बेबे परेशान थी। उम्र का असर उनके शरीर पर साफ साफ नज़र आ रहा था। बेबे लकड़ी के सहारे चलती है। एक हाथ में लकड़ी पकड़ कर दूसरे हाथ को कमर पर रख कर हिलती-डुलती घर के दस बार चक्कर काट चुकी है। रसोई में खाने के व्यंजन आदि तैयार कर रखे हैं। सुबह से शतायु का कोई पता नहीं। बेबे परेशान हो कर बार बार अंदर बाहर चक्कर लगाने लगी।