जून की रात थी। हवा ठप थी। गर्मी से हाल-बेहाल हो रहा था। मौलाना रहमत अली दरवाजे़ खडे़ पसीना पोंछ रहे थे। ‘‘ओफ्रफोह! आज की रात तो बड़ी मुश्किल से कटेगी--------’’ ‘‘हाँ, जी सही कहा,’’ पटेल बाबू जाते-जाते खडे़ हो गए, ‘‘अब तो बस एक गर्मी का ही मौसम रह गया है। बाक़ी तो सब नाम के हैं।’’ ‘‘कल टी0वी0 बता रहा था कि इस बार गर्मी ने पिछले पचास सालों का रिकार्ड तोड़ा है।’’