आई को गुजरे छह महीने हो गए हैं। शायद आप भी जानना चाहेंगे कि मेरा क्या हुआ? मैंने क्या किया? मेरे साथ जो हुआ, इस बात का खुद मुझे विश्वास नहीं हो रहा। मैं पिछले पांच महीने से कोचीन में हूं, अप्पा के गांव में। आई के निधन के बाद अप्पा ने मुझे मना लिया था कि मैं उनके साथ पुणे चलूं। मैंने आनन-फानन अपना सामान पैक किया था। अगले दिन मैं ऑफिस गई थी रेजिगनेशन देने के लिए। श्रीधर से काफी बहस हुई। उसका कहना था कि तुम चाहे तो कुछ दिन और छुट्टी ले लो, पर जॉब मत छोड़ो। मैंने मन बना लिया था। यहां किसी महीने धागे के सहारे अपने आपको जोड़े रखने का कोई मतलब नहीं है।