तीन-चार महीने पहले तक लगता था, जिंदगी का सफर तन्हा ही काटना है, किसी की उस तरह कमी महसूस नहीं हुई। अकेले जीना सीख लिया, अब...लगता है आस-पास हर वक्त किसी को होना चाहिए, ताकि मेरे होने का अहसास बना रहे। इतवार की सुबह जल्दी आंख खुली। दो ब्रेड टोस्ट में खूब मक्खन लगाकर खाया। दसेक बजे तैयार होकर मैंने गाड़ी निकाली। पेट्रोल था, लेकिन इंजन से ‘घर्र’ की आवाज आ रही थी, साकेत में द टॉप गैराज में मैं हमेशा गाड़ी ठीक कराने ले जाती थी। ग्यारह बजे वहां पहुंची, मेरा हमेशा का मैकेनिक जॉन मिल गया। उसने बोनेट खोलकर गाड़ी का मुआयना किया और कहा, ‘घंटा-भर तो लगेगा। ऑइल-वॉइल डालना है, पानी चैक करना है...’