सब कुछ आनन-फानन हो गया। 31 मार्च को रात की फ्लाइट से मैं दिल्ली आ गई। जब दिल्ली एयरपोर्ट पर प्लेन ने लैंड किया, रात के दस बज रहे थे। मैं टैक्सी करके घर आई। मकान मालिक मुझे देखकर चौंक गए, ‘अरे अनु तुम! दो दिन पहले तुम्हारे ऑफिस से किसी का फोन आया था कि तुम महीना-भर नहीं आओगी...!’ ‘जी...मैं आ गई।’