फ्लाइट डेढ़ घंटे लेट थी। मैं तीन बजे मुंबई एयरपोर्ट पहुंची और रात को दस बजे पुणे। वापसी का सफर ठीक ही था। फ्लाइट में मैंने खाना खा लिया था। दादर बस स्टॉप पर कुछ फल खरीद लिए। इस बार ना जी मिचलाया, ना किसी ने कोई सवाल किया। अब तक तो विद्या दीदी ने सबको यह बात बता दी होगी! अप्पा, अमम्मा, कोचम्मा, कोचमच्ची! पता नहीं क्या प्रतिक्रिया हुई होगी सबकी? घर पहुंची, तो आई सो चुकी थीं। मेरे बार-बार खटखटाने पर उनींदी आंखों से उन्होंने दरवाजा खोला। मुझे देखते ही उनकी बांछें खिल गईं, ‘अनु, तू? सरप्राइज देला ग मला।’