आसपास से गुजरते हुए - 17

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मैं भुनभुनाती हुई कमरे में आ गई। यहां रहने का अब कोई मतलब नहीं। भैया को जो क्रांति करनी हो करें, मुझे नहीं करनी। कमरे में आकर मैं सामान बांधने लगी, मूंज पर से सुबह सुखाए कपड़े उतारे, ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी अपनी चीजें समेटने लगी। विद्या दीदी कमरे में आई, ‘क्या कर रही है अनु?’ मैंने उसकी तरफ देखे बिना कहा, ‘मैं जा रही हूं!’ ‘कहां?’ मैंने रुककर कहा, ‘पुणे!’