घर पहुंची, तो वहां कोहराम मचा था। सुरेश भैया सुबह की बस पकड़कर पुणे आ पहुंचे थे। मुझे घर में ना पाकर सब लोग घबरा गए थे। मुझे देखते ही आई की जान में जान आई, ‘काय झाला अनु? कुठे गेली होतीस तू? अग, सांग ना?’ सुरेश भैया ने मेरी तरफ तीखी निगाहों से देखा, ‘पता है, मेरी तो जान ही निकल गई थी। कहीं रुक गई थी, तो फोन करना था न।’