बारिश थम चुकी थी.. बालकनी में झूले की गति के समान दोलायमान विचारों को विराम देने की कोशिश में कृति की नजर गमले में लगे पौधे की एक पत्ती की नोंक पर लटकी उस आखिरी बून्द पर टिक गयी, जो टपकते टपकते रह गयी थी और अपने जड़त्व और गुरुत्वाकर्षण के बीच संघर्षरत थी .उस बून्द के साथ उसे एक साम्य सा महसूस हुआ. वह भी तो आज तक खुद से ही जूझ रही है, जैसा सोचती, वैसा कर नहीं पाती, हर बार टूटती पर दूसरे ही पल दुगुने उत्साह से जुट जाती एक नए संकल्प के