दीप शिखा - 5

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उसके बाद जो भी हुआ सब विपरीत ही हुआ शहर के दूसरे कोने में रहने वाले उसके पति के घर एक अच्छा दिन देखकर उसे छोड़ आए “बच्ची वहां पता नहीं कैसे रहेगी !” ऐसे बोलते हुए सारनाथन हॉल में बने झूले पर बैठे उस समय झूला वहीं लगा था हॉल की दीवार पर कुछ चित्र लगे थे उसमें से कुछ पेरुंदेवी ने कपड़े व चमकीली पन्नियों से बनाऐ थे और रवि वर्मा के बनाए चित्र भी टंगे थे