क्या यही प्यार है - 2

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क्या यहीं प्यार हैं भाग-2 में ज़री है... दो दिन बाद शाबा के खत में कहे लफ्ज़ो के मुताबिक मै स्टेशन पहुंच गया था, उसदिन कई गाड़िया स्टेशन पर आई रुकी और अपनी मंज़िल के लिए गुज़र गई शाम हो चली थी लेकिन शाबा का पता नहीं था. मै न चाह कर भी घर की और चल दिया.... शाबा के घर पर ताला लगा था. तब यकीन हुआ कि वो आज नहीं आयी.... मन और दिल उसके आने की अगुआई में कल की योजना में लग गया.... और ऐसे ही हर रोज़ सिल सिला चलता रहा... और देखते देखते महीनों फिर साल गुज़र