मां का रौद्र रूप मैंने उस दिन पहली बार ही देखा था। रत्ना ने पलंग पर सोई हुई मां का गला दबाने की जैसे ही कोशीश की, मां ने उसे लात मारकर दुर फेंक दिया। जिस मान-सम्मान के पीछे मां , रत्ना की कहीं सभी बातें सुनकर सहती रही, ध्येर्य का बांध उस दिन टुट ही गया। मां उसे पीटते हुये बाहर सड़क पर ले आई। उन्होंने रहवासियों को बताया कि आज मेरी बहु ने मुझे गला दबाकर मारने की कोशिश की। मां ने खुद पुलिस बुलवाई और अपनी बहु रत्ना के विरुद्ध रिपोर्ट लिखवाई। चालाक रत्ना ने पुलिस स्टेशन पर हाथ पैर जोड़कर मां से माफी मांग ली। मां ने उसे माफ कर दिया। घर आकर उसी रात रत्ना ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट पर उसने मेरे और मां के विरूद्ध बयान लिखे। वह लेटर श्लोक के हाथ लग गया।