इसके बाद हमारी दो चार बातें और हुईं। लेकिन उन सारी बातों से मुझे पूरी उम्मीद हो गई थी कि आते ही मैं अपनी योजनानुसार बहुत कुछ कर सकुंगी। न जानें क्यों मेरे दिमाग में यह कूट-कूट भर गया था कि मैं कुछ ही हफ़्तों में प्रिग्नेंट हो जाऊंगी। अब एक-एक पल जहां मुझे एक-एक बरस लग रहा था। वहीं मैं हर संभव कोशिश कर रही थी कि गर्भवती हर हाल में हो जाऊं। कोई कसर कहीं बाकी न रह जाए। अब जब क़दम बढ़ा है, उठ ही गए हैं तो क्यों न उसका फायदा उठाया जाए। अपनी सूनी गोद को हरा-भरा किया जाए। फिर इससे किसी को नुकसान तो हो नहीं रहा है। हालांकि अब यह सब मुझे एक पागलपन से अधिक कुछ नहीं लग रहा।’