मन्नू की वह एक रात - 14

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उसका उत्तर सुन कर मैं फिर अपने कमरे में आ गई। आते ही मैंने तेज लाइट ऑफ कर दी और नाइट लैंप ऑन कर दिया और बेड के पास आकर खड़ी हो गई। नजरें मेरी उस कम रोशनी में भी जमीन देख रही थीं। अपने पैरों के करीब ही। तभी चीनू कमरे में दाखिल हुआ। मैं सोच रही थी कि वह डरा सहमा संकोच में कुछ सिकुड़ा सा होगा। लेकिन नहीं ऐसा नहीं था उस पर कोई ख़ास फ़र्क नहीं था।