मन्नू की वह एक रात - 8

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‘सही कह रही हो तुम। घर-परिवार लड़कों-बच्चों में अपना सब कुछ बिसर जाता है। मगर ये मानती हूं तुम्हारी याददाश्त पर कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा है। इसलिए छत वाली घटना तुम्हीं बताओ मेरे दिमाग में तो बात एकदम नहीं आ रही है।’ ‘अच्छा तो याद कर वह जेठ की दोपहरी ...... । और सामने वाले घर का चबूतरा। जहां मुहल्ले के उद्दंड लड़के छाया के नीचे अ़क्सर बैठ कर ताश वगैरह खेलते रहते थे, या बैठ कर गप्पे मारा करते थे। आए दिन सब आपस में भिड़ भी जाते थे। उस समय तू यही कोई नवीं या दसवीं में रही होगी।’