वह राजीव के साथ अपने घर आ गई थी पर अब वो अपना घर नहीं रहा था मायका था और सच में यही महसूस भी किया, जहाँ बचपन बीता, जवानी के कुछ साल बिताये, वही घर अब पराया लग रहा था, घर के कोने कोने में उसकी यादें बिखरी पड़ी थी किन्तु मन अब यह मानने को तैयार नहीं था कि घर अपना नहीं रहा ! यहाँ उसने अपने जीवन के कुछ खुशनुमा साल बिताये हैं । उसे अब पति का घर परिवार भाने लगा, अपना लगने लगा ।