तेईस दिसम्बर को दस बजे वाली बस से वह शिमला पहुँच गया। जाह्नवी अपने ड्राईवर गोपाल के साथ बस स्टैंड पर प्रतीक्षारत मिली। निर्मल को देखते ही उसे कुछ इस तरह की तृप्ति का अहसास हुआ जैसे मरुस्थल में भटके मुसाफिर को जल दिखने पर होता है। लंच करते समय श्रद्धा ने कहा — ‘निर्मल, आज कितने दिनों बाद जाह्नवी के चेहरे पर खुशी के चिह्न दिखे हैं, नहीं तो ये उदास चेहरा लिये अपने स्टडी—रूम में सारा दिन किताबों में ही उलझी रहती थी।