गद्बेरी का समय है सुन्दरी ढिबरी जला कर सभी कमरों में दिखाती हुई बाहर के चौखट के पास रख कर सूने आँखों से कोठरी की ओर देखती है मन आज कुछ व्याकुल सा है ना जने क्यों किसी भी कार्य में उनका जी नहीं लग रहा है इस भरे-पुरे घर में भी वह नितांत अकेलापन महसूस करती है इसी लिए वह अपने को घर के कार्यों में झोंके रहती है ताकि उसे अकेला पा कर उसके भीतर का सूनापन उन पर हावी ना हो जाय पर वह आज हावी हो रहा है और वह उसे रोक नहीं पा रहीं