कमरे में गहन शांति का वास हो गया था। इतनी की सुई भी गिरती तो उसकी भी आवाज सुनाई देती। दोनो ही अपनी अपनी मानसिक यायावरी में उलझते जा रहे थे। अनुराग अभी भी अपने मन की बातें कहने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहे थे। जानते थे कि जीवन के बहुत कम दिन बचे हैं जिनमें से रोज एक एक दिन कम होता जा रहा है। भूमिका बनाने का समय नही है उनके पास और उन्ही बचे दिनों में सारी गांठे खोलनी हैं।