'कुंजड़-कसाइयों को तमीज कहाँ... तमीज का ठेका तो तुम्हारे सैयदों ने जो ले रक्खा है?' मुहम्मद लतीफ कुरैशी उर्फ एम एल कुरैशी बहुत कम बोला करते। कभी बोलते भी तो कफन फाड़कर बोलते। ऐसे कि सामने वाला खून के घूँट पीकर रह जाए। जुलेखा ने घूर कर उन्हें देखा। हर कड़वी बात उगलने से पहले उसके शौहर लतीफ साहब का चेहरा तन जाता है। कष्ट या आनंद का कोई भाव नजर नहीं आता। आँखें फैल जाती हैं और जुलेखा अपने लिए ढाल तलाशने लग जाती है। वह जान जाती कि मियाँ की जली-कटी बातों के तीर छूटने वाले हैं। मुहम्मद