मुम्बई मैं घूमने के लिए नहीं बल्कि यहीं बस जाने के लिएआई थी जब जबलपुर में थी तो कच्ची उमर के मेरे लेखन में प्रौढ़ता नहीं थी हालाँकि मेरी कहानियाँ तब भी बड़ी बड़ी पत्रिकाओं धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, ज्ञानोदय, सारिका, कहानीआदि में प्रकाशित हुई हैं लेकिन मेरे लेखन को प्रौढ़ता मुम्बई ने ही दी मुझे पत्रकारिता के लिए ज़मीन भी मुम्बई ने ही दी मुम्बई के फलक पर मेरे ढेरों दोस्त बने आज मुम्बई का पूरा साहित्यिक वर्ग मेरा दोस्त है नई पीढ़ी की युवा लेखिकाएँ मुझे अपना आदर्श मानती हैं और मैं उन्हें यथासंभव प्रमोट भी करती हूँ आज ये सब मेरीअंतरंग सहेलियाँ हैं मुम्बई ने मुझे जीना सिखाया, मुम्बई तुझे सलाम