मैं गुजरात काठियावाड़ का रहने वाला हूँ। ज़ात का बनिया हूँ। पिछले बरस जब तक़्सीम-ए-हिंदूस्तान पर टंटा हुआ तो मैं बिलकुल बे-कार था। माफ़ कीजिएगा मैं ने लफ़्ज़ टंटा इस्तेमाल किया। मगर इस का कोई हर्ज नहीं। इस लिए कि उर्दू ज़बान में बाहर के अल्फ़ाज़ आने ही चाहिएँ। चाहे वो गुजराती ही क्यूँ न हों।