बरसों बाद अपनी छोटी बहन को पाकर मन्नू चाची फिर अपनी पोथी खोल बैठी थीं। छोटी बहन बिब्बो सवेरे ही बस से आई थी। आई क्या थी सच तो यह था कि बेटों-बहुओं की आए दिन की किच-किच से ऊब कर घर छोड़ आई थी। और बड़ी बहन के यहां इसलिए आई क्योंकि वह पिछले एक बरस से अकेली ही रह रही थी। वह थी तो बड़ी बहन से करीब पांच बरस छोटी मगर देखने में बड़ी बहन से दो-चार बरस बड़ी ही लगती थी। मन्नू जहां पैंसठ की उम्र में भी पचपन से ज़्यादा की नहीं दिखती थी वहीं वह करीब साठ की उम्र में ही पैंसठ की लगती थी। चलना फिरना दूभर था। सुलतानपुर से किसी परिचित कंडेक्टर की सहायता से जैसे तैसे आई थी। मिलते ही दोनों बहनें गले मिलीं और फ़फक पड़ीं। इसके पहले उन्हें किसी ने इस तरह भावुक होते और मिलते नहीं देखा था।