“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है”
“तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?”
“तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।”
“किस क़दर है।”
“तो अब तुम हिसाबदान बन गईं जमा तफ़रीक़ के सवाल करने लगीं मुझ से”