अनुराग

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अनुरागचारों ओर कितने परिवर्तन हो चुके थे। हों भी क्यों नही पूरा एक दशक जो बीत गया था। मुकुन्द डाक्टर बन गया था। जिन्दगी की दौड़ में वह उस मुकाम पर पहुँच गया था, जहाँ पहुँचने की आकांक्षा वह पाल रखा था। बावजूद के काॅलेज उन दिनों की याद बार-बार उसके जेहन में आ जाती थी, और धुंधली यादों के बीच से सुधा का सुन्दर चेहरा घूम जाता था। सुधा का हंसमुख परंतु घमंडी स्वभाव उसे कचोटने लगता। सुधा के व्यवहार के रूखेपन की कल्पना के बावजूद उसके