लतीका रानी

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वो ख़ूबसूरत नहीं थी। कोई ऐसी चीज़ उस की शक्ल-ओ-सूरत में नहीं थी जिसे पुर-कशिश कहा जा सके, लेकिन इस के बावजूद जब वो पहली बार फ़िल्म के पर्दे पर आई तो उस ने लोगों के दिल मोह लिए और ये लोग जो उसे फ़िल्म के पर्दे पर नन्ही मुन्नी अदाओं के साथ बड़े नर्म-ओ-नाज़ुक रूमानों में छोटी सी तितली के मानिंद इधर से उधर और उधर से इधर थिरकते देखते थे, समझते थे कि वो ख़ूबसूरत है। उस के चेहरे मुहरे और उस के नाज़ नख़रे में उन को ऐसी कशिश नज़र आती थी कि वो घंटों उस की रोशनी में मबहूत मक्खियों की तरह भिनभिनाते रहते थे।