लेखक, परेश मकवाना वीर घुटनो पर वही बैठ कर रोने लगा..''में क्या करता मुस्कन में भागा नही था पर किसी से मदद के लिए गया था की कोई आये ओर तुम्हे बचा ले..लेकिन तुम हो मेरी इस कोशिश को भी मेरी निर्बलता ही मानोगी'' देर रात जब वीर उदासी में घर लौटा उसे देखते ही उसकी माँ ने कहा - " अरे वीर आ गया