उस - बदनाम गलियों

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जो वक्त बीतने पर नहीं है आए आज कहते हैं कि हम वक्त पर है उनसे अब क्या उम्मीद रखें जो कसमें खाते हैं रोज आज भी वो झूठे वादे कर कर अपनी बदनाम गलियों में चले गए उन्हें लगता है कि हमें कुछ मालूम नहीं यह उनका नहीं वक्त का दोष है हमने उन्हें कभी बताया ही नहीं तूने बदनाम गलियों से हम वाकिफ बहुत हैं किस तरह रोज बिकती है दो रोटी पर आबरू रोज और कहते हैं कि वह बदनाम गलियां नहीं हमारे जीने का अंदाज है उनसे अब हम क्या कहे आपके जीने के अंदाज में कईयों घर रोज उजड़ जाते हैं कईयों की खुशियां मिट्टी में दफन हो जा