‘सेवाग्राम’ नाम सुनते ही मैं लिखना छोड़ बाहर देखने लगा। इस जगह से देश का इतिहास और मेरे बचपन की यादें दोनों जुड़ी हुई हैं। जब जब इस जगह से गुजरना होता है, मन अपने राष्ट्रपिता को याद करके भावुक हो जाता है। मैं त्रिलोकी से कहने लगा, “ देखिए, बातों ही बातों में हमलोग लगभग 80 किलोमीटर की यात्रा कर चुके। आपको बताऊँ त्रिलोकी साहब, मेरे दादाजी ने इस सेवाग्राम आश्रम में बापू के साथ कुछ दिन गुजारे थे। साबरमती के बाद महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित यह दूसरा महत्वपूर्ण आश्रम है ।