ख़ब्त - 2

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" आ जुबान रख, भरोसो कोनी के ? न मैं मुकरूँगा और ना मेरा विजया..." अरे, भानु कर दी न छोटी बात, बिस्वास है तेरी जुबां पे, "" और मुझपे, " और दोनों खिलखिलाहट हसने लगते है " ! भानुप्रताप सिह ने अपने इकलौते बेटे विजय की सगाई पड़ोसी गाँव मे अपने बालपन के खास मित्र ईश्वर सिह के वहा तय कर रखी थी !सगाई, बिना किसी रीति-रिवाज ! बस बातो ही बातो में लगा और जुबान, " पहले जमाने की बात ही कुछ ओर थी, वैसे आज भी राजस्थान के ऐसे छोटे-मोटे गाँवो में नीम के पेड़, वट व्रक्ष की