लघुकथा ( तीन बेचारे ✍?)~~~~~~~~~~~~~~~"झील किनारे बैठ के सोचू क्यों बचपन तू दूर गया" "अरे यार ! हमने झील किनारे मिलने का कार्यक्रम इसलिए नहीं बनाया था कि तुम "पुष्प सैनी" की यह कविता गुनगुनाओ" --- सुरेश ने उखड़ते हुए कहा "तो यार तुम बता ही नहीं रहे हो, हम आख़िर मिले क्यों हैं झील किनारे" ---- नागेश बोला "और क्या पन्द्रह मिनट हो गए बैठे-बैठे" ---- महेश ने कहा देखों, हम तीनों को अपनी पढ़ाई-लिखाई से निपटे तीन साल हो गए हैं और तीन साल से हम बेरोजगार निठल्ले हैं ।अब तो मुझे रिश्तेदारी में भी जाने में शर्म आने लगी है" ---