पहली नजर में मैंने उसे पहचाना ही नहीं, पहचानती भी कैसे उसकी तब्दीली की तो सपने मंे भी कल्पना नहीं कर सकती थी मैं, वैसे भी कल्पना करने की जरूरत ही नहीं थी। उसे तो तभी मैं अपनी स्मृति की कन्दरओं से बाहर फेंक चुकी थी गोया पृथ्वी के बाहर...