तब राहुल सांकृत्यायन को नहीं पढ़ा था - 1

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यह कहानी अनुरंजन की कैशोर्य कल्पनाशीलता की है। उसकी अनगढ़ता और दुःसाहस की है। एक ग्रामीण किशोर की अदम्य जिजीविषा भी है यहाँ। जाने क्या है इस कहानी में और जाने क्या नहीं है! कुछ भी हो, उसकी इस कहानी में व्यावहारिकता और डर नहीं है। क्या किसी एकांतप्रिय किशोर के उठाए कदम में यह सब ढूँढ़ना कुछ ज़्यादा उम्मीद करना नहीं है! चाहे जो भी समझिए, मगर, इस कहानी के नायक को अपनी उम्र-जनित सीमा का बोध नहीं है। परिवार और समाज की मान्यताओं और अपेक्षाओं से चिपके रहने का उसका कोई पूर्वाग्रह नहीं है। और शायद इन्हीं कारणों से, उसकी यह कहानी कही भी जा रही है।