पूरे मोहल्ले के लिए पहेली था ये परिवार। परिवार भी क्या―एक करीब साठ-पैंसठ साल के वृद्ध, और एक सुदर्शन युवक। सब उनको ‘विनोद बाबू’ के नाम से जानते। और युवक...उसका नाम नहीं पता। घर बनाने मे जिस मुख्य तत्व की आवश्यकता होती है उसका पूर्ण अभाव था।“स्त्री” जैसी कोई वस्तु न थी। यहाँ तक कि खाना पकाने के लिए भी एक मर्द ही था, “मदन।” वो भी अपने मालिकों से ज्यादा अकड़बाज़। किसी से बात न करता, और कोई जबरन रोक ले तो बहाने बना कर झट से निकल जाता।मानव स्वभाव की विशेषता ही यही है―जहाँ रहस्य होता है, वहीं