बंद खिड़की खुल गई

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उस रोज़ सूरज ने दिन को अलविदा कहा और निकल पड़ा बेफिक्री की राह पर! इधर वह बड़ी तेज़ी से भाग रही थी, इस उम्मीद में कि इस सड़क पर हर अगला कदम उसके घर की दहलीज़ के कुछ और करीब ले जाएगा! तेज़ बहुत तेज़, मानो उसके पांवों में मानों रेसिंग स्केट्स बंधे हों! पर आज लग रहा था, हर कदम पर घर कुछ और दूर हो जाता है! वह कौन थी? शर्लिन, शालिनी, सलमा या सोहनी। नाम कुछ भी हो, अकस्मात आ टपकी आपदाओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वे हमेशा सॉफ्ट टारगेट ढूंढ ही लेती हैं! तो उस बदहवास हालत में कहाँ पाँव पड़ रहे थे, उसे होश नहीं था। हाथ का बैग कब, कहाँ गिर गया था, उसे याद नहीं। उस मीठे जाड़े वाले सर्द मौसम एक शाल को अपने जिस्म पर कसे वह दौड़ती जा रही थी।