सुब्हा का वक्त..! लोबान के धुंप से ढका मजार का माहौल.. गुलाब के फूलो की महक..! तरह-तरह के ईत्र की मिली-झुली खुशबू का लुभावना आलम..! ढोलक के ताल कव्वालियां की रौनक.. धुएं के गुब्बारो में से अलप-झलप दिखने वाले डरावने चहरे..! कुछ भी बेअसर नही था! जिया खलिल का हाथ थामे खडी थी! कोई लंबी घनी डाढी वाला शख्श मिर्गी के मरीज की तरह छटपटा रहा था ,तो कोई बड़ी बड़ी आंखों से उसे घूर रहा था! कोई अपना सर पीट रहा था तो कोई चिल्ला रहा था! "मत जलाओ मुझे..! छोड़ दो ! जाने दो यहां से!"जिया लोबान के धूप में गुम हुए उस शख्स की ओर