कहानी का सारांश:- इस कहानी में मुख्य भूमिका पिता के रूप में दीनानाथ की है। अपने आदर्शो के लिये दीनानाथ प्रसिद्ध हैं। दीनानाथ के बाद एक और अहम भूमिका उनके छोटे पुत्र हरिनाथ की है। हरिनाथ अपने पिता के आदर्शो और उनके द्वारा दिये संस्कारों में अपना जीवन व्यतित करते है। और अंत में अपने कर्मोे के अनुरूप अपने जीवन का सुख भोगते है। सबक के तौर पर कहानी में एक और भूमिका दीनानाथ के बडे पूत्र बंशीनाथ की है। बंशीनाथ पिता के आदर्शों को ठुकरा कर धन दौलत के मोह में वशीभूत हो कर अपने कर्माे का फल भोगते हैं।हरिपुर