तपन ने आसमान की ओर सर उठाकर देखा तो कुछ देर बस देखता ही रहा! आकाश तो वहां भी था पर इतना खुला कभी नहीं लगा, खूब खुला, निस्सीम, अनंत! और ये हवा, ये भी तो वहां थी पर इतनी आजाद, इतनी खुशनुमा कभी न थी! उसने जोर से सांस खिंची, इतनी जोर से मानो ब्रह्माण्ड की सारी हवा अपने फेफड़ों में भर लेने की ख्वाहिश रखता हो! कैसा हल्का महसूस कर रहा था खुद को, जैसे सदियों से एक बोझ उठाये हुए उसका वजूद थक गया था!