लिपि सेंट्रल पार्क के किनारे उगे घने मेपल ट्री के नीचे बिछी बेंच पर जाकर बैठ गई, नीचे पड़े सूखे पत्तों की चरमराहट से एक अजीब-सी ध्वनि उत्पन्न हुई उसने ललाई लिए एक अधपके पत्ते को उठाकर स्नेह से सहलाया और कुछ देर यूँ ही थामे रही मानों उस पत्ते में सिमटी ऊष्मा को दोनों हाथों के सकोरों में भर-भरकर बटोर रही हो, अतीत की यादें उससे अनायास ही आ टकराईं, उसने मेपल के पत्ते को जूड़े में खोंस लिया सर्द हवाएँ उसके कानों को सुर्ख किए दे रही थी, ओवरकोट पहने होने के बावजूद भी उसकी देह में झुरझुरी दौड़ गई