संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (3) मित्र मेरे मत रूलाओ..... मित्र मेरे मत रूलाओ, और रो सकता नहीं हूँ । आँख से अब और आँसू, मैं बहा सकता नहीं हूँ ।। जिनको अब तक मानते थे, ये हमारे अपने हैं । इनके हाथों में हमारे, हर सुनहरे सपने हैं ।। स्वराज की खातिर न जाने, कितनों ने जिंदगानी दी । गोलियाँ सीने में खाईं, फाँसी चढ़ कुरबानी दी ।। कितनी श्रम बूदें बहाकर, निर्माण का सागर बनाया । कितनों ने मेघों की खातिर,सूर्य में हर तन तपाया ।। धरती की सूखी परत ने, विश्वासों को चौंका दिया । कारवाँ वह