हिम स्पर्श - 73

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73 ”वफ़ाई, देखो आज सूरज नहीं निकला।“ “हाँ, पहाड़ियों पर दिवसों तक सूरज नहीं निकलता।“ “ऐसा क्यूँ होता है?” “यहाँ यह सामान्य बात है। अनेक बार सूरज संध्या के समय पर भी निकल आता है, जब वह डूबने वाला होता है।“ “तो क्या आज सूर्यास्त से पहले सूरज निकलेगा?” “मैं क्या जानुं? मैं थोड़े ही न सूरज की माँ हूँ?” “ओ सूरज की नानी। तुम भी...।“ “क्या?” “चलो छोड़ो यह सब। हम सूरज को प्रार्थना करते हैं। संभव है वह हमारी बात सुन ले।” “मुझे तो नहीं आती सूरज की कोई प्रार्थना, तुम्हें आती है?” वफ़ाई ने पीठ घूमा