वक़्त से नाराज हूं वक्त से अनजान है, कुछ पता पता नहीं है, जानने की जिज्ञासा पाने की लालसा खोने को कुछ नहीं, पाने को बहुत कुछ भटकता हूं दरबदर कहता किसी से कुछ भी नहीं सोचता हूं बहुत करने को सोचा था बहुत पर कर नहीं पा रहा हूं घेर लिया है अपनों ने ढेर किया है अपनों ने, जाने को मैं चला जाऊं रोकने पर रुको नहीं पर कुछ होते हैं ऐसे अपने, जिन्हें इनकार नहीं कर सकता भावना की उमर रेखा, हाय कुछ ज्यादा नहीं पर देखने में लगता है कि वह खत्म होगी नहीं, एक बार मिल जाए वह मुझे तो बताओ मैं हूं, क्या सोचने को सोचता बहुत पढ़कर कुछ नहीं पाता ठान लिया मैंने,, पाना है मुझे अपना लक्ष्य पर वक्त ने बताया ही नहीं लक्ष्य है क्या