क़सूर तो तुम्हारा था,फ़िर सजा मुझे क्यों मिली ?

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क्या हुआ था तुम्हारे साथ?ये सवाल अभी तक ना जाने कितनी बार निधि के जहन से गुजरा ,पर वो ख़ामोश ही रही ,उसे फिर से उन्ही भावनाओं को महसूस करके अपने दिल के टुकड़े नही करने थे।फिर आज क्यों ये दिल वेबस था कि उड़ेल दु जो इस दिल मे किसी कोने में बैठ मुझे रोज तकलीफ से गुजरने को मजबूर करता है,तुम अजनबी हो साहिल ,नही अजनबी तो नही वर्षो पहले तुम्हारी एक झलक के लिए मैं कितना इंतजार करती थी, तुम आज भी वैसे ही हो,बिल्कुल नही बदले,और मैं शरीर से लेकर आत्मा तक बदल गयी, अब वो