इस दफ़ा मैं एक अजीब सी चीज़ के मुतअल्लिक़ लिख रहा हूँ। ऐसी चीज़ जो एक ही वक़्त में अजीब-ओ-ग़रीब और ज़बरदस्त भी है। मैं असल चीज़ लिखने से पहले ही आप को पढ़ने की तरग़ीब दे रहा हूँ। उस की वजह ये है कि कहीं आप कल को न कह दें कि हम ने चंद पहली सुतूर ही पढ़ कर छोड़ दिया था। क्योंकि वो ख़ुश्क सी थीं। आज इस बात को क़रीब क़रीब तीन माह गुज़र गए हैं कि मैं माई नानकी के मुतअल्लिक़ कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था।