कोई अपना सा होता जो मेरे मन को छुता.. कोई सपना सा था जो सारी रात न रुठा कहा से सिमट आई बरखा आंखो तले जमकर उसने मन के बोझ को है लूंटा 17 जैसे बरसों से बंजर उस घर की जमीन को पंख लग गए! परिवार के सारे सदस्य कोई अनछुए श्राप से मुक्त हो गए थे! कई सालों तक काले घने अंधेरे बादलों के नीचे दबी हुई जिंदगी तेजपूंज की किरनो से तरोताजा होकर खिल उठी! कुछ हद तक बोझ कम हुवा था! जैसे जीने का सहारा उसे मिल गया था..! अब वो एक एक दिन बेताबी